वेदानुगत पर्यावरण
Abstract
सारांश- वेदों की दृष्टि में सम्पूर्ण भू–मण्डल एक राष्ट्र है। जहाँ तक भारत का सवाल है, सम्पूर्ण भू–मण्डल का मात्र 2.4 प्रतिशत ही भारत के अधिकार क्षेत्र में है। यदि इसी प्रकार से पेड़ों का कटान कर कंक्रीट के बाग लगाये जाते रहे तो निकट भविष्य में भारतीयों को प्राकृतिक संसाधनों की भयकर कमी का सामना करना पड़ेगा। 10 लाख हेक्टेयर कृषि तथा जंगलों वाली भूमि पर भी लोग बसते चले जा रहे हैं। इस प्रकार पर्यावरण भारत की प्रमुख समस्या बनती जा रही है और यदि इस समस्या का उचित समाधान नहीं हुआ तो अनेकानेक समस्याओं का जन्म स्वतः हो जाएगा। वेदों में पर्यावरण चिन्तन, प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता के सन्दर्भ में विस्तृत वर्णन मिलता है। वेद साहित्य की सबसे खास बात यह है कि उनमें समस्याओं के साथ-साथ उस समस्या का समाधान भी है, यदि हम समय रहते उनका पालन करें तो हमें उन समस्याओं का सामना ही नहीं करना पड़ेगा। जनसंख्या, प्राकृतिक सम्पदा और भोग्य पदार्थों में सन्तुलन बना रहना आव यक है अन्यथा की स्थिति में आध्यात्मिक, अधिदैविक और अधिभौतिक कारणों से जनसंख्या घटने लगती है। संस्कृत भाषा में 'पितरौ' शब्द का अर्थ पिता और माता दोनों होता है। उसी प्रकार 'अपत्य' शब्द जो 'सन्तान' के अर्थ में प्रयुक्त होता है वह पुत्र और पुत्री दोनों का वाचक है। इसलिए जहाँ पुत्र उत्पन्न करने का उल्लखे आया है उसमें पुत्री अर्थ भी समाविष्ट है, क्योंकि वेदों में प्रकृति प्रदत्त भेद को छोड़कर पुत्र-पुत्री में कोई विभेद नहीं किया गया। वेदों के अनुसार तभी हम एक समृद्ध एवं विकसित, शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।