वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी का बदलता स्वरूप

Authors

  • शशिरंजन स्नातकोत्तर, हिंदी विभाग, लाना०मि0वि0वि0, दरभंगा

Abstract

भाषा विचारों के आदान प्रदान का माध्यम होती है। भाषा जितनी सुबोध, सरल और सहज होगी, भाव सम्प्रेषण उतना ही सफल और सशक्त होगा। भारतीय भाषाओं की परम्परा, इतिहास और विकास क्रम में हिन्दी का वही स्थान एवं महत्व है जो पुरा काल में संस्कृत का था। वर्तमान में हिन्दी भाषा न केवल भारत में अपितु विदेशो में भी करोड़ों लोगों की संपर्क भाषा बनी हुई है। भारत की आबादी का तकरीबन आधा हिस्सा मूलतः हिन्दी भाषी है और वह आपसी विचार-विनिमय के लिये हिन्दी का ही प्रयोग करता है। दरअसल भाषा किसी देश के इतिहास का वह आईना होती है, जिसमें भविष्य भी देखा जा सकता है। हिन्दी भारतवर्ष का स्वाभिमान है और हिन्दी के विकास तथा प्रचार-प्रसार में वास्तविक रूप से भारत के भविष्य की झाँकी देखी जा सकती है। आज हिन्दी का स्वरूप वैश्विक या ग्लोबल हो चला है, वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही है साथ ही वह अपने स्वरूप को निरंतर माँज भी रही है।

मुख्य शब्द :- वैश्विक, भाषा, साहित्य, हिंदी, आधुनिकता, भूमंडलीकरण, माध्यम

Downloads

Published

2022-06-28

How to Cite

शशिरंजन. (2022). वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी का बदलता स्वरूप. JOURNAL OF BUSINESS MANAGEMENT & QUALITY ASSURANCE, 5(1). Retrieved from http://journal.swaranjalipublication.co.in/index.php/JBMQA/article/view/133

Issue

Section

Research Articles