भारत में स्कन्ध विपणियों का उद्भव एवं विकास
Abstract
एक अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने में स्कन्ध विपणि का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। स्कन्ध विपणि व्यवहार में एक ऐसा आधार विकसित करता है जिसके माध्यम से देश प्रवाहित किया जाता है। इसकी सहायता से पूँजी को गतिशील बनाकर उसका प्रतिनिधित्व करने वाली प्रतिभूतियों में तरलता तथा मूल्य निरन्तरता लाने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार स्कन्ध विपणि के माध्यम से छोटे एवं बड़े बचतकर्ताओं तथा निवेशकों की बचत को लाभदायक विनियोग में परिवर्तित कर देश की आर्थिक संमृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने का सतत् प्रयास किया जाता है। बचतकर्ता, विनियोजक, औद्योगिक एवं व्यापारिक कम्पनियाँ तथा वित्तीय संस्थान आदि ऐसे हित रखने वाले पक्षकार हैं जिनके लिए स्कन्ध विपणि अपनी सेवायें प्रस्तुत करते हैं। व्यक्तिगत एवं संस्थागत विनियोजकों के लिए स्कन्ध विपणि एक ऐसा संगठित बाजार प्रस्तुत करते हैं जहाँ पर कि सम्बन्धित पक्षकार स्वतंत्रतापूर्वक प्रतिभूतियों में लेन-देन करते हैं और आर्थिक विकास के लिए धन उपलब्ध करते हैं। वास्तव में देश की आर्थिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों से आर्थिक क्रियाकलापों का स्तर निर्देशित होता है। अतः बाजार का रूख भी देश की आर्थिक एवं राजनैतिक स्थिति से प्रभावित होता है। इसलिए स्कन्ध विपणियों को देश की आर्थिक प्रगति का मापक माना जाता है।