पंचायती राज में महिला प्रतिनिधियों की समस्याएं

Authors

  • डा भारत सिंह एम.ए. , नेट , पी-एच.डी. (राजनीति विज्ञान) ग्राम - हैदलपुर, पोस्ट - परौर जनपद - शाहजहाँपुर

Abstract

पंचायती राज सत्ता का विकेन्द्रीकरण की एक व्यवस्था है। इस व्यवस्था में आम आदमी के द्वारा अपने ग्राम स्तर पर कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण और उनके कार्यान्वयन में भाग लेना है। राजधानी दिल्ली में पंचायती राज व्यवस्था के 15 वर्षों की उपलब्धियों तथा स्थानीय लोकतन्त्र को अधिक सशक्त बनाने के मुदों पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा – “पंचायती राज की सबसे बड़ी सफलता यही है कि इसने महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण किया है। इसमें कोई संदेह की बात नहीं है कि आज देश भर में चुने हुए 26 लाख पंचायत प्रतिनिधियों में लगभग 9 लाख 75 हजार प्रतिनिधि महिलाएं हैं। इसके साथ ही यह भी एक तथ्य है कि नवनिर्वाचित पंचायत महिला प्रतिनिधियों की संख्याए विश्व के कल निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या से भी अधिक हैं। प्राचीन काल से भारत में गाँव पंचायत व्यवस्था कार्य करती रही हैं। इस परम्परागत गाँव पंचायत के मुखिया व सरपंच का चुनाव सदस्यों की आम सहमति से होते थे। सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिये जाने की परम्परा थी। यही कारण था कि उन दिनों गाँव पंचायतों के पीछे नैतिक शक्तियाँ काम करती थीं। ये पंचायते पूर्णतया स्वतन्त्र संस्थाएं होती थीं। पंचायती परम्परा की पृष्ठभूमि में स्वतंत्र भारत में नये पंचायती राज का गठन किया गया। गांधी जी के सपने को साकार करने के लिए स्वतंत्र भारत में 1950 ई में लागू नवीन संविधान में पंचायतों को स्थान दिया गया। महात्मा गांधी ने देश की स्वतन्त्रता से पहले पंचायत राज व्यवस्था की परिकल्पना की थी।

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Published

2022-07-01

How to Cite

सिंह ड. भ. (2022). पंचायती राज में महिला प्रतिनिधियों की समस्याएं. JOURNAL OF INDUSTRIAL RELATIONSHIP CORPORATE GOVERNANCE AND MANAGEMENT EXPLORER, 4(1). Retrieved from http://journal.swaranjalipublication.co.in/index.php/JIRCGME/article/view/223

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