1857 के स्वाधीनता संग्राम: सामाजिक परिप्रेक्ष्य के विविध आयाम
Abstract
यह भी माना जाता है कि सन् 1857 की क्रांति के मूल में मुस्लिम धार्मिक कट्टरता भी शरीक रही थी लेकिन यह विचार एक सुविचारित साजिश है। सन् 1857 के लोक संग्राम की गरिमा कम करने के लिए ब्रिटिश इतिहासकार कभी उसे 'जेहाद बताकर सांप्रदायिक रंग देते हैं तो कभी क्षेत्रीय एवं अपदस्थ जागीरदारों का दोष बताते हैं। ब्रिटेन के नागरिकों की हमदर्दी प्राप्त करने के लिए विदेशी इतिहासकार इसे 'ईसाइयत का विरोध एवं प्राचीन परंपराओं को पुनः स्थापित करने का प्रयास कहकर भी क्रांति को अस्वीकार करते हैं।" 1857 की क्रांति को उत्तर भारत के भू–भाग तक ही सीमित माना जाता है, क्या यह राष्ट्रीय क्रांति नहीं थी, ब्रिटिश उपनिवेशवादी 1857 के संग्राम के महत्व को सीमित करने के लिए उसे क्षेत्रीय बगावत भी ही साबित करना चाहते थे किंतु तथ्य इसे असत्य साबित करते हैं। यह क्रांति गुजरात से लेकर पूर्वी भारत में चटगांव तक थी और उत्तरी भारत में इस मुक्ति संग्राम का प्रभाव ज्यादा था, किंतु इसका असर पूरे देश पर पड़ा। गंगा-यमुना के मैदान के मध्य का जो क्रांति सक्रिय भू–भाग था वह यूरोप के कई अनेक देशों यथा फ्रांस, आस्ट्रिया और पर्सिया के समग्र क्षेत्रफल से कहीं ज्यादा विस्तृत था।