मैनपुरी जिले में स्थित माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के सामाजिक-आर्थिक स्तर का तुलनात्मक अध्ययन
Abstract
प्रस्तुत शोध अध्ययन का उद्देश्य जनपद मैनपुरी (उ0प्र0) के माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के सामाजिक-आर्थिक स्तर का तुलनात्मक अध्ययन करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु 300 शिक्षक (महिला एवं पुरुष) नवोदय, राजकीय, सहायता प्राप्त एवं वित्तविहीन विद्यालयों से आकस्मिक विधि से चयनित किये। इन विद्यालयों के शिक्षकों के सामाजिक-आर्थिक स्तर के मापन हेतु ’’डाॅ. टी.एस. सोधी एवं डाॅ. गुरुदेव शर्मा’’ द्वारा निर्मित ’’सामाजिक-आर्थिक स्तर मापनी’’ उपकरण का प्रयोग किया गया। विश्लेषण-उपरान्त नवोदय, राजकीय एवं सहायता प्राप्त विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों का सामाजिक-आर्थिक स्तर उच्च पाया गया और वित्तविहीन विद्यालयों के शिक्षकों का सामाजिक-आर्थिक स्तर निम्न पाया गया। सम्भवतः इसका कारण यह हो सकता है कि नवोदय, राजकीय एवं सहायता प्राप्त विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक उच्च योग्यता प्राप्त, प्रशिक्षित, स्थायी, उचित वातावरण, समाज में अच्छी सामाजिक प्रस्थिति वाले, उच्च आय, चिकित्सीय सुविधा एवं आवासीय सुविधा प्राप्त थे, जबकि वित्तविहीन विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों की अल्प वेतनमान , अप्रशिक्षित, प्रबन्धतन्त्र का कठोर नियन्त्रण, सेवा सुरक्षा का भय, व्यवसाय के प्रति असन्तोष होने के कारण उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति निम्न पायी गई। ये कई कारण वित्तविहीन विद्यालयों के शिक्षकों के सामाजिक-आर्थिक स्तर को प्रभावित करते हैं।
शिक्षकों के सामाजिक आर्थिक स्तर को अधिक उच्च बनाने हेतु निश्चित मानदेय, प्रशिक्षण, चिकित्सीय एवं आवासीय सुविधा एवं व्यवसाय के प्रति सन्तोष की भावना प्रदान करना, जिससे उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर में वृद्धि हो। शिक्षा मानव विकास का मूल साधन है षिक्षा के अभाव में व्यक्ति का सामाजिक, आर्थिक, नैतिक एवं चारित्रिक विकास असम्भव है। जन्म के समय बालक का आचरण पशु के समान होता है वह अपनी मूल प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर आचरण करता है तत्पष्चात् षिक्षा के द्वारा ही मूल प्रवृत्तियों में षुद्धिकरण होता है। षिक्षा के अभाव में मानव पशु के समान होता है। इस सन्दर्भ में कहा भी गया है जो व्यक्ति विद्या, साहित्य, संगीत से विहीन होता है वह पशु के समान होता है।