भारत में उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति एवं संभावित चुनौतियाँ: एक मूल्यांकन
Abstract
भारत का उच्च शिक्षा तंत्र विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उच्च शिक्षा तंत्र है। सभी को उच्च शिक्षा के समान अवसर सुलभ कराने की नीति के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश में महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विगत 70 वर्षों में आजादी के बाद देश के विश्वविद्यालयों की संख्या में 40 गुना, महाविद्यालयों में 80 गुना, विद्यार्थियों की संख्या में 80 गुना और शिक्षकों की संख्या में 30 गुना वृद्धि हुई है। विकसित देशों में कम संस्थानों में बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने पर ध्यान दिया जाता है और एक ही संस्थान में हजारों विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं, जबकि भारत में जरूरी बनियादी सुविधाओं के बिना भी हजारों कॉलेज चल रहे हैं, जहां केवल कुछ हजार विद्यार्थियों को पढ़ाने की ही व्यवस्था है। देश में इंजीनियरिंग और प्रबंधन कॉलेज भले ही बढ़ रहे हों, उनकी न तो गुणवत्ता बढ़ रही है, और न ही इंडस्ट्री की बदलती जरूरतों के मुताबिक उनका पाठ्यक्रम अपग्रेड हो रहा है। निजी महाविद्यालय कागज पर खोल तो दिए गए हैं लेकिन अनियमितताएं व्यापक है तथा इनमें सुविधाओं का अभाव है। यह सुविधाएं भवन, खेल के मैदान, पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं, इंटरनेट, शिक्षकों की योग्यता एवं संख्या से संबंधित है। हालत यह है कि मोटी फीस देकर एमबीए या इंजीनियरिंग डिग्री हासिल कर रहे लाखों युवा हर साल बेरोजगारों की कतार में शामिल हो रहे हैं, या जीविकोपार्जन की मजबूरी में अत्यंत साधारण नौकरी ज्वाइन कर अर्ध बेरोजगारी के शिकार हो रहे हैं। वर्तमान में बहुत से ग्रेजुएट्स के पास न तो अपने विषय की जानकारी है, न कौशल है और न ही आत्मविश्वास है। ऐसे में यहां स्किल इंडिया कार्यक्रम मददगार हो सकता है, जिसके तहत जिस विद्यार्थी को किसी खास कौशल में रुचि हो, तो वह उसे आगे बढ़ा सके और आत्मनिर्भर हो सके। भारत की कोई भी शिक्षण संस्था आज दुनिया की शीर्ष 200 उच्च शिक्षा संस्थानों की सूची में नहीं है। जबकि पूर्वी एशिया के छोटे-छोटे देशों की कई शिक्षण संस्थाएं शीर्ष 50 की सूची में शामिल हैं। देश में लगभग चालीस हजार महाविद्यालय और आठ सौ विश्वविद्यालय हैं। सरकार वर्ष 2020 तक उच्च शिक्षा में हिस्सेदारी को 24.5 से बढ़ाकर 30 प्रतिशत तक ले जाना चाहती है। हालांकि तब भी यह कम होगा, क्योंकि अमेरिका और ब्रिटेन में यह प्रतिशत 80 से ऊपर है। चीन में भी उच्च शिक्षा का औसत 35 प्रतिशत से अधिक है। जहां तक आर्थिक लाभ और सुविधा की बात है, भारत की स्थिति कई यूरोपीय देशों से बेहतर है। फिर भी उच्च शिक्षा का ढांचा मजूबत क्यों नहीं बन पा रहा है? डिजिटल होने और दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना संजो रहे भारत में उच्च, तकनीकी और प्रबंधन शिक्षा का ढांचा चरमराता दिख रहा है। देश और समाज चाहता है कि उच्च शिक्षा नीतियों में जल्द बुनियादी बदलाव कर इन्हें अमलीजामा पहनाया जाए ताकि देश के शैक्षणिक विकास का इतिहास गौरवशाली बना रहे।
मुख्य शब्द:- उच्च शिक्षा, शिक्षण संस्थाएॅ, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, पाठ्यक्रम, बेरोजगारी।