प्रकृति एवं पर्यावरण सरंक्षण: विविध आयाम
Abstract
आज सारे विष्व में पर्यावरण को लेकर चिंता है। डगमगाता हुआ पर्यावरण हमें आने वाले भयावह खतरे की चेतावनी दे रहा है। वनों की अंधाधुध कटाई, ग्लोबल वार्मंग, औद्योगिकीकरण और भूमिक्षरण से पूरी मानवता पर संकट के बादल गहरा रहे हैं। कहा नहीं जा सकता कि दिनोंदिन जहरीले होते वायुमंडल से प्राणियों का अस्तित्व कब विलीन हो जाए और सारी पृथ्वी अपनी ही संतानों द्वारा उपजाई गई विभीषिका से क्रान्तिहीन होकर जार-जार रोती रहे। विकसित देषों में, जहां संसाधनों की कमी नहीं है, वहां पर्यावरण के प्रति जन चेतना ज्यादा है और वहां प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए निरंतर सार्थक उपाय किये जा रहे हैं। लेकिन विकासषील देष दोहरी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। एक तो उन्हें विकास भी करना है और दूसरा उन्हें अपने प्राकृतिक पर्यावरण को भी बचाना है। पर्यावरण संरक्षण के लिए हमारी चिंता और विकास के लिए प्रतिबद्धता उचित है। यह संतोष का विषय है कि स्थिति हमारे नियंत्रण से अभी बाहर नहीं हुई है और पर्यावरण के प्रति हम जागरूक हो गए हैं। हमारे देष में पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक उपचारात्मक कदम उठाए गए हैं। इस सम्बन्ध में बनाये गये अनेकों कानून, सरकारी एजेंसियों, स्वैच्छिक संगठनों और अन्य संस्थाओं ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जन जागृति हेतु विषिष्ट प्रयास किए है जिसके अच्छे नतीजे सामने आना शुरू हुए हैं। हाल के वर्षो में न्यायपालिका के आदेषों से भी पर्यावरण सुधार के लिए अपेक्षित उपाय करने हेतु सरकारों को बाध्य होना पड़ा है।
मुख्य षब्द- पर्यावरण, सरंक्षण, संसाधन, औद्योगीकरण, विकास, प्रकृति, जीवन, घटक।