कानपुर महानगर की मलिन बस्तियों में जीवन का सामाजिक आर्थिक अध्ययन
Abstract
औद्योगीकरण और नगरीकरण के वर्तमान युग में, प्रवासी जनसंख्या का अनुकूलतम बसाव और नगरों का सकारात्मक विकास नितान्त आवश्यक है ताकि नगरीय विकास सुनियोजित हों और जीवन की दशाएँ उत्तम हो। पूरब का मानचेस्टर, भारत का ग्यारहवां बृहत्तम महानगर, उ0प्र0 की वाणिज्यिक राजधानी कानपुर देश के उन चंद औद्योगिक नगरों में गिना जाता है जो गिरते गिरते उठ खड़े होने के हौसले से भरा है, अपने गौरवशाली अतीत को पुनजीर्वित करते हुए वह एक बार फिर जीवन्त नगरों को कोटि में गिना जाता है। नीति निर्धारकों का लक्ष्य था कानपुर महानगर में नगरीकरण के बिना औद्योगीकरण करना परन्तु हुआ औद्योगीकरण के बिना नगरीकरण। कानपुर महानगर में जनसंख्या वृद्धि जन्म, मृत्यु जैसे जैविक कारकों का प्रतिफल नहीं बल्कि प्रवास जैसी सामाजिक लेन-देन की प्रक्रिया का प्रतिफल है। चतुर्दिक ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त निर्धनता तथा बेरोजगारी के कारण गांव से नगर को प्रवास हुआ परन्तु नगरीय पोषण क्षमता के घट जाने, कार्यावसरों व रोजगार की कमी के कारण ये जनसंख्या का संक्रेन्द्रण अनाधिकृत रूप से मलिन बस्तियों के रूप में हुआ है यह स्तर निश्चित रूप से ग्रामीण जीवन स्तर से निम्न था जिससे नगरीय विकास का नहीं अपितु नगरीय अवनयन या नगरों के ग्रामीणकरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ है।