महात्मा गाँधी का सर्वोदय दर्शनः एक अध्ययन
Abstract
सर्वोदय विचार काल्पनिक नहीं है, यह समाज की पुनः रचना का एक व्यापक कार्यक्रम है। यह आवश्यक है कि समाज का एक ही रूप चले या एक ही प्रकार की व्यवस्था अपनाएं यद्यपि समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुरूप बदलाव मानव स्वभाव का ही एक अपरिहार्य गुण हैं जो जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक है बदलाव का प्राथमिक गुण है। समकालीन परिदृष्य में बदलाव परिवर्तन, विकास और गतिशीलता को मूल्यों की अवधारणा के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है। किसी एक क्षेत्र में क्रमिक विकास का जीवन बहुमुंखी है। अतः उसके जीवन में जब तक बहुमुंखी सुधार नहीं होते है तब तक उसका विकास अधूरा है। गांधी जी मानव की दशा सुधारने के लिए सदा चिंतित रहते थे। उनके सम्पूर्ण विचार मानव केन्द्रित है। वे मनुष्य और मानव समुदाय को इकाई मानते हुए सम्पूर्ण व्यवस्था में आमूल परिवर्तन के पक्ष में थे। गांधी जी के अनुसार जीवन के सभी पक्षों में मूलभूत परिवर्तन ही मानव का वास्तविक विकास कर सकता है, और मनुष्य को वास्तविक मानव बना सकता है। इस संदर्भ में गांधी जी ने सर्वोदय दर्शन दिया, जिससे समानता, न्याय और भ्रातृत्व के आदर्शों को अत्यधिक बल मिला। “गांधी जी की सर्वोदय सम्बन्धी अवधारणा उनके विचार दर्शन का सार है। उनका प्रमुख विचार केन्द्र सम्पूर्ण समाज का उदय और विकास है जिसकी परिकल्पना उन्होंने अपने सर्वोदय सम्बन्धी विचारों में अभिव्यक्त की है। गांधी जी का मानना है सर्वोदय एक जीवन दर्शन, एक जीवन पद्धति और नए समाज की रचना की दिशा में किया जाना वाला स्तुत्य प्रयास है।‘‘ चूंकि गांधी जी साध्य एवं साधना की एकता में विश्वास करते है, इसीलिए उनके लिए सर्वोदय एक साधन है और साथ ही साध्य भी गांधी जी के अनुसार, सर्वोदय प्रत्येक मानव एवं समाज का परम लक्ष्य है। अतः उस तक पहुंचना सब का परम कर्तव्य है। सर्वोदय के मार्ग में पहाड़ भी आ सकते है, वेगवती नदियां भी रास्ते में बाधा स्वरूप आ सकती है और बड़े-बड़े खड्डे खाइयां आदि भी आ सकती है किंतु इन बाधाओं के होते हुए भी हमें अपने परम लक्ष्य की जाने से कोई रोक नहीं सकता। इसी इच्छा शक्ति के आधार पर हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते है।‘‘