गयावाल का सांस्कृतिक विघटन
Abstract
समाज परिवर्तनशील है। मनुष्य का जन्म होता है। समूह के बीच उसका विकास होता है। जीवन में वह अपनी विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करता है और फिर समाप्त हो जाता है। एक पीढ़ी की सामप्ति के बाद दूसरी पीढ़ी उसका स्थान लेती है। नई पीढ़ी अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप पुरानी पीढ़ी की मान्यताओं और कार्य प्रणालियों में परिवर्तन करती है। आवश्यकताओं में परिवर्तन के साथ सामाजिक संस्थाओं और संगठनों में भी परिवर्तन होता है। जाति-व्यवस्था भी भारतीय सामाजिक जीवन की एक मुख्य संस्था है। इसमें भी समयानुसार परिवर्तन होते रहते हैं। यह कहना, जैसा कि अन्धविश्वासियों का मत है, सर्वथा गलत होगा कि जाति-व्यवस्था में कोई परिवर्तन हुआ ही नहीं है। पर हाँ, जाति-व्यवस्था की परिवर्तन की गति इनती धीमी है कि जल्दी पता नहीं चलता है, पर परिवर्तन निरन्तर नियम है।