इदं एवं पराहमं के संघर्ष के मध्य झूलते असामान्य चरित्र
Abstract
मनोविश्लेषण में ‘ईगो’ धारणा ने पर्याप्त ख्याति पाई और इस सिद्धान्त के अनुसार ‘ईगो’ व्यक्तित्व की वह संस्था है जो तर्क बुद्धि पर आधारित है। इदम् का वह रूप जो यथार्थता से प्रभावित होकर विकसित होता है, अहम् है। व्यक्ति अपने जीवन में कुछ अनुभव प्राप्त करता है उसके आधार पर अहम् का विकास होता है। अतः वह भौतिक वातावरण से अनुकूलित होता है। जन्मते ही व्यक्ति में अहम् जैसा कुछ तथ्य या भाग नहीं होता। बच्चे के बढ़ने पर बाह्य सम्पर्क में आने पर उनकी अहं धारणा का विकास होता है। अहम् व्यक्ति के व्यक्तित्व में सामंजस्य लाता है। यह इदम् परहम् को नियंत्रित तथा शासित करता है और समग्र व्यक्तित्व के हित और उसकी दूरस्थ आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बाह्य जगत् से सम्पर्क बनाये रखता है। अहम् के कार्य-सम्पादन निपुणता से करने पर सामंजस्य की स्थिति बनी रहती है। इदम् की पशुकृतियों पर अहम् तर्क बुद्धि अक्षमताओं से अंकुश लगाता है। किन्तु अहम् स्वयं सर्व शक्तिमान नहीं होता। वह उस आदि स्रोत पर ही निर्भर करता है।