स्वातंत्र्योत्तर काल में हिन्दी कहानी का विकास:
Abstract
प्रेमचन्द के आगमन से हिन्दी कहानी की दशा-दिशा बदलना शुरू हुई। वे पहले ऐसे कथाकार हैं जिन्होंने कथा-साहित्य की अवधारणा ही बदल दी। कहानियों को मानवीय-मूल्यों और जीवन-संघर्ष से जोड़कर, इस विधा को समाजोन्मुख बनाया। कहानी की परंपरा में वे ऐसे प्रस्थान बिन्दु हैं, जिनका ओज आज तक बना हुआ है। प्रेमचन्द से पहले और समानांतर लिखने वालों से दूसरे प्रस्थान बिन्दु जयशंकर प्रसाद हैं। उसके बाद कहानी ने जो सर्वनात्मकता अर्जित की उसमें प्रेमचन्द और प्रसाद की दो भिन्न भाव, चिंतन और कथा-दृष्टियाँ शामिल हैं। उनके बाद जैनेन्द्र, अज्ञेय, इलाचन्द जोशी, यशपाल, उग्र, भगवतीचरण वर्मा, उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ आदि ने कहानी को नयी मंजिल तक पहुँचाया।