दक्षिण भारत में जातिवाद और दाहसंस्कार क्रियाः एक समाजशास्त्रीय अवलोकन
Abstract
यह तथ्य किसी से छिपा नही है कि भारतीय सामाजिक संरचना के प्रमुख आधारों में जाति व्यवस्था प्रमुख रही है हम भले ही विज्ञान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे, शिक्षा के क्षेत्र में एक लम्बी छलांग लगा चुके हों, हमारे विकास के तमाम प्रतिमानों ने पुरानी जड़वत परम्पराओं को ध्वस्त कर दिया हो, इसके बावजूद भी जातिवाद के अभिशाप से हमारा समाज अभी भी अभिशप्त है। इस अभिशाप से एक लम्बी लड़ाई लड़े जाने की जरूरत है और यह लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष, जाति विशेष, क्षेत्र विशेष, धर्म विशेष के लोगों द्वारा नही लड़ी जा सकती है और न ही जीती जा सकती है। वास्तव में इसके लिए समेकित रूप से पहल की आवश्यकता है। बगैर संयुक्त पहल और प्रयास के जातिवाद जैसी नकारात्मक सामाजिक वैचारिकी को बदला नही जा सकता, जाति के आवरण से समाज को मुक्त करके ही प्रगतिशील, विकासशील समाज के सपने को साकार किया जा सकता है।