स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी के असामान्य चरित्रों का मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
Abstract
आधुनिक परिवेश में व्याप्त मानवीय कुण्ठा, संत्रास के संदर्भ में आज के साहित्य में प्रायः सवाल उठाए जाते हैं। हिन्दी-कहानी भी इससे अछूती नहीं है। नारी और पुरुष दोनों ही इस वृत्ति के शिकार हुए हैं। यद्यपि दोनों की समस्याएं और समाधान एकदम एक से नहीं कहे जा सकते, फिर भी वे एक-दूसरे से एकदम असम्बद्ध भी नहीं कहे जा सकते।