स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की प्रासंगिकता
Abstract
आज हमारे देश भारत सहित समस्त विश्व में बढ़ती अराजकता, हिंसा, मनो-उन्माद, आतंकवाद, नशाखोरी तथा पर्यावरण क्षरण आदि समस्याओं के कारण समस्त मानव जाति को अपनी सभ्यता और संस्कृति के समक्ष अस्तित्व का संकट दिखाई दे रहा है। वास्तव में आँखें बंद रखे हुए मानव ने अपने सांस्कृतिक मूल्यों की अवहेलना करते हुए पश्चिमीकरण के रास्ते जो विकास की यात्रा तय की है, उसके कारण आज हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता प्रतीत हो रही है। विकास की इस यात्रा में मनुष्य प्रजाति ने शिक्षा प्रणाली के मानवीय आधारभूत मूल्यों की अनदेखी की।
वास्तव में शिक्षा मनुष्य को मानव बनाने की प्रक्रिया है या यह कहा जाये कि मनुष्य को मानव बनाने का दायित्व शिक्षा पर है। शिक्षा की व्यवस्थागत प्रक्रिया से निकलकर ही बालक एक वयस्क के रूप में समाज में अपना स्थान और स्तर निर्धारित करता है। व्यक्तित्व और समाज की आवश्यकता के अनुसार बालक को शिक्षित और सभ्य बनाने का अहम कार्य शिक्षा व्यवस्था से ही अपेक्षित होता है।