आर्थिक विकास के साथ ही साथ नष्ट् होती हमारी संस्कृति एवं परंम्परा

Authors

  • डॉ मुहम्मद शमीम एसोसिएट प्रोफेसर, वाणिज्य राजकीय महाविद्यालय, महाराजगंज

Abstract

अपनी प्रगति एवं उपलब्धियों पर तब तक गर्व नहीं कर सकता जब तक कि उसके यहाॅं षिक्षा का स्तर उच्च न हो। सम्पूर्ण भारतवर्ष के विकास के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को सस्ती और तकनीकी, ज्ञानवर्द्धक शिक्षा सुलभ कराई जानी चाहिये। वर्तमान में जो शिक्षा प्रदान की जा रही है वह छात्रों को भम्रित करने का ही काम अधिक कर रही है। शिक्षा इस प्रकार से होनी चाहिए जिससे कि छात्र अपने जीवन काल में कुछ कमा खा सके। राष्ट् की बेरोजगारी कम हो सके तथा सभी को आजिविका चलाने का अधिक से अधिक अवसर मिल सके। शिक्षा उत्पादोन्मुख होनी चाहिए, क्याकि उत्पादन में वृद्धि ही आर्थिक विािस का मूल आधार है। गाॅंधीजी ने शिक्षा के क्षेत्र में इस कमी को पहचान लिया था। उन्होंने शिक्षा को उत्पादकत्ता से जोड़ने का प्रयास किया था। आज का समय आधुनिक है। हम आधुनिक समाज में जी रहे है, अतः शिक्षा को भी तकनीकि होना चाहिए, जिससे कि उद्योगांे का विकास हो सके और भारत उद्योगों के विकास से और आगे बढ़ सके।

Downloads

Published

2024-07-09

Issue

Section

Articles