‘‘पंचाल संस्कृति के विविध आयाम”
Abstract
मौर्य साम्राज्य के विध्वंस होने के पष्चात् इसके खण्हरों से कई नए साम्राज्य उभरें जिसमें उभरने वाला एक साम्राज्य पंचाल था। यह बुद्व के अवधि के दौरान 16 महाजनपदों में एक था, जो वत्र्तमान में कानपुर से वाराणसी के गंगा के मैदानी भागों में फैला हुआ है। इसकी दो शाखाएँ - उत्तर पंचाल जिसकी राजधानी ‘अहिक्षत्र’ और दक्षिणी पंचाल जिसकी राजधानी काम्पिल्य थी। पंचाल जनपद को प्राचीन काल में संभवतः क्रिवि जनपद के नाम से जाना जाता था इसका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण ;13ध्5ध्4ध्9द्ध में भी आया है ;कृक्यइति पुरो पंचालानाचझतेद्ध । तत्पष्चात् ’’पंचाल नामकरण किन परिस्थितियों में किस व्यक्ति विषेष ने किया, इसका स्पष्ट तथ्यात्मक प्रमाण नहीं मिलता। पाणिनी की अष्टाध्यायी ;4ध्7ध्763द्ध में पंचाल के स्थान पर प्रत्यग्रंथ का उल्लेख है। गंगा एवं रामगंगा के बीच प्रत्यग्रंथ जनपद स्थित था, जिसे पंचाल भी कहा गया है। ख्1, पतंजलि ने अपने महाकाल में एक जनपद के रूप में पंचाल का उल्लेख किया है। ख्2, मध्यकालिन शब्दकोषों के अनुसार पंचाल का ही दूसरा नाम प्रत्यग्रंथ था, जिसकी राजधानी अहिच्छत्र थी।