वैश्विक परिवेश में भारत-चीन संबंधः चुनौतियाँ एवं उभरते मुद्दे
Abstract
विगत चार दशकों के दौरान चीन महापरिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। इस छोटे से कालखंड में यह विश्व की महाशक्ति भी बन चुका है, और आने वाले वर्ष में वह अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए तैयार है। चीन यह शानदार उभार, अपनी अद्वितीय और आश्चर्यजनक आर्थिक प्रगति-दर, जो पिछले 40 वर्षो से लगातार, बिना लड़खड़ाए 10 प्रतिशत के आसपास बनी हुई है- के बल पर पहले से ही सुनिश्चित कर चुका है। उसकी शानदार, चमचमाती हुई उपलब्धि का मनुष्यता के ज्ञात इतिहास में कोई जोड़ नहीं है। यहाँ तक कि चीन के आलोचक भी उसकी इस महान सफलता का लोहा मान चुके हैं। विश्व बैंक ने भी लिखा है कि चीन ने -‘इतिहास में सबसे तेज, टिकाऊ और भरोसेमंद प्रगति, एक बड़ी अर्थव्यवस्था के माध्यम से प्राप्त की है। इस अवधि में उसने 80 करोड़ नागरिकों को गरीबी के दलदल से बाहर निकाला है।‘ चीन में बदलाव की शुरुआत 1979 से आर्थिक सुधारों की घोषणा से हुई थी। आज वह ‘क्रय-शक्ति तुल्यता‘ के आधार पर विश्व-भर में पहले पायदान पर मजबूती से डटा है। अनेक अर्थशास्त्री यह अनुमान लगा रहे हैं कि चीन आगामी दो दशकों में, यहाँ तक कि उससे पहले ही विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तैयारी कर चुका है। यह बात ध्यान में रखनी होगी कि जब भी ऐसा होगा, वह पिछले सौ या फिर उससे भी अधिक वर्षो में अपनी तरह का पहला अवसर होगा, जब विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति की मशाल किसी गैर-यूरोपीय देश के हाथो में होगी।